111 साल बाद 'कोमागाटा मारू' को सही नाम 'गुरु नानक जहाज़' से पहचाने जाने की मांग तेज
- धार्मिक
- 23 Jul,2025

अमृतसर, 23 जुलाई नज़राना टाइम्स ब्यूरो
श्री अकाल तख़्त साहिब के कार्यवाहक जथेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गरगज्ज ने आज 1914 में कनाडा से जबरन लौटाए गए गुरु नानक जहाज़ की 111वीं वर्षगांठ पर विशेष संदेश जारी करते हुए भारत सरकार, पंजाब सरकार और सिख संस्थाओं से 23 जुलाई को 'गुरु नानक जहाज़ स्मृति दिवस' के रूप में आधिकारिक मान्यता देने की अपील की है|
जथेदार गरगज्ज ने कहा कि बाबा गुरदित्त सिंह के नेतृत्व में 377 भारतीय प्रवासी—जिनमें 341 सिख थे—कनाडा पहुंचे थे, लेकिन नस्लवादी कानूनों के चलते उन्हें प्रवेश से वंचित कर जबरन वापस भेज दिया गया। उन्होंने बताया कि इस ऐतिहासिक जहाज़ को गुरु नानक स्टीमशिप कंपनी ने जापानी कंपनी से किराए पर लिया और इसका नामकरण गुरु नानक जहाज़ किया गया, जिसे आज भी भारत के इतिहास में गलत तरीके से कोमागाटा मारू कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि कनाडा के सरे और वैंकूवर शहरों में अब इस दिन को गुरु नानक जहाज़ स्मृति दिवस के रूप में आधिकारिक मान्यता मिल चुकी है, और यह सिख समुदाय के लिए गर्व की बात है।
यह यात्रा केवल राजनीतिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि जहाज़ पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अखंड पाठ साहिब और निशान साहिब की उपस्थिति थी—जो गुरु नानक देव जी के मूल्यों को दर्शाते हैं।
जथेदार गरगज्ज ने अफसोस जताया कि भारत में अब भी इतिहास की पुस्तकों में इस जहाज़ को कोमागाटा मारू के नाम से जाना जाता है, जबकि बाबा गुरदित्त सिंह की आत्मकथा 'गुरु नानक जहाज़' में इसका असली नाम स्पष्ट रूप से दर्ज है।
उन्होंने विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थानों और गुरुद्वारा प्रबंधक समितियों से अपील की कि वे इतिहास को सही रूप में प्रस्तुत करें और पाठ्यक्रमों में गुरु नानक जहाज़ नाम का उपयोग करें। यह ऐतिहासिक रूप से भी सही होगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत भी बनेगा।
अंत में, उन्होंने भारत सरकार, पंजाब सरकार और सभी सिख संस्थाओं से अपील की कि 23 जुलाई को आधिकारिक तौर पर 'गुरु नानक जहाज़ स्मृति दिवस' घोषित किया जाए। उन्होंने कहा कि यह घटना न केवल सिख संघर्ष का प्रतीक है, बल्कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा का भी एक अहम हिस्सा रही है।
उन्होंने सरे और वैंकूवर की नगरपालिकाओं और उन सभी संगठनों का आभार जताया जिन्होंने इस ऐतिहासिक सच्चाई को उजागर करने में योगदान दिया।
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