यह कविता आज से पचास साल पहले एक हकीम साहब ने कही थी, जो कवि भी थे।
- कविता
- 24 Feb,2025
यह कविता आज से पचास साल पहले एक हकीम साहब ने कही थी, जो कवि भी थे।
जहां तक काम चलता हो ग़िज़ा से
वहां तक चाहिए बचना दवा से
अगर ख़ून कम बने, बलग़म ज्यादा
तो खा गाजर, चने, शलज़म ज्यादा
जिगर के बल पे है इंसान जीता
ज़ोफे(कमजोरी) जिगर है तो खा पपीता
जिगर में हो अगर गर्मी का एहसास
मोरब्बा अमला खा या अनानास
अगर होती है मेदा में गिरानी(भारीपन)
तो पी ली सौंफ या अदरक का पानी
थकन से हो अगर अज़लात (मांसपेशियाँ) ढीले
तो फ़ौरन दूध गरमा गरम पी ले
जो दुखता हो गला नज़ले के मारे
तो कर नमकीन पानी के ग़रारे
अगर हो दर्द से दाँतों से बेकल
तो उंगली से मसूड़ों पर नमक मल
जो ताक़त में कमी होती हो महसूस
तो मिस्री की डली मुल्तान की चूस
शफ़ा चाहिए अगर खांसी से जल्दी
तो पी ले दूध में थोड़ी सी हल्दी
दमा में ये ग़िज़ा बेशक है अच्छी
खटाई छोड़ खा दरया की मछली
अगर तुम्हें लगे जाड़े में ठंडी
तो इस्तेमाल कर अंडे की ज़र्दी
जो बदहज़मी में चाहे तू अफ़ाक़ा(आराम)
तो दो इक वक़्त का कर ले तू फ़ाक़ा(उपवास)
🤔
नोट: मोहतरमा का कवि या कविता से कोई संबंध नहीं है वो तो फोटो इसीलिए डाल दी कि कई लोग फोटो देखकर ही रुकते हैं
☺️☺️☺️
Posted By:
GURBHEJ SINGH ANANDPURI
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